A Poem in Hindi.
शाम अब ढलती नहीं
सीधे रात आती है..
खवाब ठगने लगते हैं,
सुबह जबरन जगाती है।वही रास्ते हैं
वहीं अब भी है मन्जिल..
सफर अच्छा नही लगता
मन्जिल रास नही आती।खुद से नाराज हूँ
या खुदा पास नहीं मेरे
दवाएं बेकार लगती हैं…
दुआएं काम नहीं आती।आलम कुछ यूं है…
तारीफ इल्जाम नजर आता है
जैसे कोशिशें खैरात चुकी हो ,
बोझ सा काम लगता है।
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